पाठशाला
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा प्रयागराज में ज्ञान महाकुंभ
भारतीय शिक्षा : राष्ट्रीय संकल्पना’ राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ

उज्जैन से विक्रम विश्वविद्यालय के दल ने की भागीदारी
उज्जैन। इस दुनिया में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है। श्रीमद्भगवद् गीता में दर्ज इस पंक्ति की सार्थकता को व्यापक रूप देने के लिए प्रयागराज के महाकुंभ में ’शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा ’ज्ञान महाकुंभ’ आयोजित किया गया है। ज्ञान महाकुंभ में भारतीय शिक्षा : राष्ट्रीय संकल्पना’ पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन हुआ।
शुभारंभ कार्यक्रम में न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि “इस अलौकिक महाकुंभ में ज्ञान महाकुंभ का आयोजन अपने आप में ही अद्भुत संयोग है। इस कार्यक्रम से पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को एक नई और भारतीय ज्ञान परंपरा से युक्त दिशा मिलेगी।“
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सर कार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कहा “हमारी ज्ञान परंपरा में एकांगी शिक्षा नहीं दी जाती थी, परंतु आज संपूर्ण विश्व एकांगी शिक्षा व्यवस्था से ग्रसित है। मोटी फ़ीस देना ही मानो का आज की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य रह गया है। हमें ऐसी कुरीतियों से दूर हटते हुए समाज में एक बार फिर भारतीय ज्ञान परंपरा की चेतना को जागृत करना होगा।“
विशिष्ट अतिथि यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डी. पी. सिंह ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की सराहना करते हुए, देश के विद्वत समाज को ज्ञान महाकुंभ जैसा बड़ा मंच देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि “आध्यात्म विद्या सभी विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ है। भारतीय ज्ञान परंपरा आध्यात्म और शिक्षा का अद्भुत मिश्रण रही है और हमें इस परंपरा को एक बार फिर बल देना होगा।
कार्यक्रम में स्वागत कर्तव्य न्यास की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ पंकज मित्तल ने दिया। आभार ज्ञान महाकुंभ के संयोजक श्री संजय स्वामी ने व्यक्त किया। आईआईआईटी इलाहाबाद के निदेशक डॉ मुकुल सुतावणे विशेष रूप से उपस्थित थे।
यह जानकारी देते हुए न्यास के क्षेत्रीय संयोजक प्रचार प्रसार डॉ जफर महमूद ने बताया कि ज्ञान महाकुंभ में विक्रम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के दो दलों में 65 विद्यार्थियों ने प्रतिभागिता की। दल प्रबंधक के रूप में डॉ अजय शर्मा, डॉ प्रमिता सिंह एवं प्रो द्वारिका जायसवाल ने प्रतिनिधित्व किया।



