पहले बेत पर रोप मलखंब होता था, इसके बाद सूत पर निवाड़ चढ़ाई
रोप मलखंब के जनक हैं उदय विश्वनाथ देशपांडे
’मलखंब पितामह’ पद्मश्री उदय विश्वनाथ देशपांडे, 50 देशों के 5 हजार से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग दी
उज्जैन। 68वीं राष्ट्रीय शालेय क्रीड़ा प्रतियोगिता में आए पद्मश्री पुरूस्कार 2024 से सम्मानित, ’मलखंब पितामह’ से मशहूर महाराष्ट्र के उदय विश्वनाथ देशपांडे का सम्मान महाराष्ट्रीय सारस्वत ब्राह्मण समाज न्यास द्वारा किया गया।
पद्मश्री उदय देशपांडे का स्वागत माला पहनाकर, सारस्वत समाज का स्मृति चिन्ह भेंटकर न्यास के मिलिंद पन्हालकर एवं कुंदा पन्हालकर ने किया। मिलिंद पन्हालकर ने बताया कि 26 जनवरी 2024 को भारत सरकार द्वारा ’मलखंब पितामह’ से मशहूर महाराष्ट्र के उदय विश्वनाथ देशपांडे को प्रतिष्ठित पद्मश्री अवॉर्ड प्रदान किया गया था। 70 साल के उदय विश्वनाथ देशपांडे को ’मलखंब पितामह’ भी कहा जाता है। उन्होंने अभी तक 50 देशों के 5000 से ज्यादा लोगों को व्यक्तिगत रूप से ट्रेनिंग दी। उन्होंने इस पारंपरिक खेल को वैश्विक रूप से पहचान देने में अहम भूमिका निभाई है। उनसे ट्रेन होने वाले लोगों में महिलाएं, दिव्यांगजन, अनाथ, आदिवासी और वरिष्ठ नागरिक भी शामिल हैं।
मिलिंद पन्हालकर के अनुसार महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले उदय देशपांडे को ’मल्लखंभ’ का ध्वजवाहक माना जाता है। वह अंतरराष्ट्रीय मलखंब कोच हैं, जिन्होंने इस खेल के लिए जिंदगी खपा दी। वह विश्व मलखंब फेडरेशन के निदेशक हैं जिन्होंने इस पारंपरिक खेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका अदा की। 70 साल के उदय विश्वनाथ देशपांडे ने निर्णय के मानदंडों के साथ एक नियम-पुस्तिका भी तैयार की। इसके साथ ही प्रतिस्पर्धा और सभी नियमों का मानकीकरण किया, जिसे भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा मान्यता प्राप्त थी। महाराष्ट्रीय सारस्वत ब्राह्मण समाज न्यास द्वारा सम्मान के अवसर पर मौजूद वरिष्ठ मलखंब खिलाड़ी एवं पद्मश्री उदय देशपांडे के शिष्य मनोहर डोडिया ने बताया कि उदय देशपांडेजी रोप मलखंब के जनक हैं, पहले बेत पर रोप मलखंब होता था, इसके बार सूत पर निवाड़ चढ़ाई। आज इस स्थिति में पहुंचाने में उदय देशपांडेजी का अतुलनीय योगदान हैं। उनके प्रयासों से ही पहली नेशनल मलखंब प्रतियोगिता 1980 में महाराजवाडा स्कूल उज्जैन में हुई। इसके बाद सिलसिला चल पड़ा। आज मलखंब देश में अपनी पहचान बना चुका है।