धर्म-अध्यात्म

आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी महाराज ससंघ का उज्जैन नगरी में हुआ मंगल प्रवेश

गुरुदेव ने आत्मा को संयम की दिशा हेतु सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र के माध्यम से मोक्ष मार्ग प्राप्ति के मार्ग का उपदेश दिया

उज्जैन। सुमति धाम, इंदौर में आयोजित पट्टाचार्य पदारोहण समारोह में पट्टाचार्य पद से अलंकृत होकर प्रथम बार उज्जैन में धर्मप्रवर्तन यात्रा करते हुए पधारे चर्या के आकाशदीप आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी महाराज ससंघ का उज्जैन नगरी में 11 मई को भव्य मंगल प्रवेश पूर्ण भव्यता के साथ हुआ।
संयम, साधना और चारित्र के पवित्र स्तंभ, तप के तेजस्वी सूर्य, निर्ग्रन्थ मुनि, पट्टाचार्य पद विभूषण आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज का ससंघ (38 पिच्छी सहित) हजारों श्रावको की उपस्थिति के साथ चल समारोह प्रातः सिंधी कॉलोनी से प्रारंभ होकर जुलूस टॉवर, चामुंडा माता चौराहा, कोयलाफाटक, निजातपुरा, बियाबानी विडी मार्केट चौराहा होते हुए कालिदास मांटेसरी स्कूल, तेलीवाड़ा पहुंचा। मंगल यात्रा में जिन ध्वज लेकर घोडे पर धजवाहक के साथ बेंड आदिवासी नर्तक दल, कर्नाटक के बेंड दल के साथ ही बड़ी संख्या में नागरिको ने भक्तिभाव के साथ उल्लासपूर्वक अगवानी की। नगर के गणमान्य नागरिक, राजनेता एवं श्रद्धालुजनों द्वारा आचार्यश्री संघ की आगवानी वंदन, पाद प्रक्षालन ओर आरती की गई।
चल समारोह तेलीवाड़ा पहुँचने पर गुरुभक्त परिवार ने चित्र अनावरण व दीप प्रज्ज्वलन किया। प्रथम पाद प्रक्षालन का लाभ तेजकुमार विनायका परिवार को प्राप्त हूआ। सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र रूपी तीन वाचना कलश की स्थापना हुई। प्रथम कलश स्नेहलता श्रवण सोगानी, दित्तीय कलश आश्विन रूचि कासलीवाल, तृतीय कलश प्रकाश राजेंद्र बडजात्या परिवार को प्राप्त हुआ। अपनी देशना के माध्यम से गुरुदेव ने आत्मा को संयम की दिशा हेतु सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र के माध्यम से मोक्ष मार्ग प्राप्ति के मार्ग का उपदेश दिया। कार्यक्रम का संचालन अनिल गंगवाल ने किया।
देशभर से पधारे श्रावक-श्राविकाएं, आराधक, एवं अनेक त्यागी व्रतधारी के साथ साथ शहर के सभी जिनालयों के ट्रस्टीयों व राजनेताओं ने इस अवसर पर गुरुदेव को ग्रीष्म कालीन देशना के लिए निवेदित करते हुए श्री फल भेंट कर निवेदन किया। गुरु भक्त परिवार एवं आयोजन समिति ने समस्त सकल जैन समाज व उज्जैन वासियो से निवेदन किया है कि इस पुण्य पर्व में अधिकाधिक संख्या में सहभागी होकर धर्मलाभ लें, और जीवन को दर्शन, ज्ञान व चारित्र की त्रिवेणी में पवित्र करें।

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