78वें निरंकारी संत समागम में शामिल हुए उज्जैन के निरंकारी श्रध्दालु
सतगुरु माता सुदीक्षाजी महाराज ने दिया आत्म मंथन के विविध पहलुओं पर आधारित संदेश, सभी का मूल स्रोत परमात्मा है उससे नाता जोड़ें

उज्जैन के भक्तों ने समागम में सफाई सेवाएं अर्पित की, निरंकारी प्रदर्शनी में रात दिन अपनी सेवाएं देकर लाभान्वित हुए
उज्जैन। प्रेम, सेवा, समर्पण, सत्य ज्ञान से ओतप्रोत 78वां निरंकारी संत समागम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। जिसमें चारों दिन लगातार समागम के मुख्य विषयः पर आधारित संदेश दिया गया। सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजापिता रमेशजी की पावन छत्रछाया में हरियाणा के समालखा स्थित संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल में 650 एकड़ के विशाल मैदान में हुए संत समागम में पूरे भारतवर्ष एवं विदेश के लाखों भक्तों सहित उज्जैन क्षेत्र के जोनल इंचार्ज राजकुमार गनवानी के सानिध्य में उज्जैन ब्रांच के संचालक मडू भाई परमार, शिक्षक बंशीलाल पाल, महिला शिक्षिका सुमित्रा अवतानी के साथ निरंकारी श्रध्दालु सम्मिलित होकर आध्यात्मिकता के अनूठे आनंद से लाभान्वित हुए।
समालखा से लौटे मीडिया सहायक विनोद गज्जर ने बताया कि उज्जैन के सेवा दल, भाई बहनों, भक्तों ने समागम में बने टेंट के रोड पर अपनी सफाई सेवाएं अर्पित की, इसके साथ ही निरंकारी प्रदर्शनी, प्रेस एवं प्रदर्शनी में रात दिन अपनी सेवाएं देकर लाभान्वित हुए।
समागम में विश्व भर से पहुंचे विशाल मानव परिवार को संबोधित करते हुए सद्गुरु माता सुदीक्षाजी महाराज ने फरमाया कि आत्म मंथन केवल विचार करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि अपने भीतर झांकने की साधना है जो परमात्मा के एहसास से सरल हो सकती है। आत्म मंथन वास्तव में स्वयं के सुधार का मार्ग है। जब मन निरंकार परमात्मा से जुड़ता है तो भीतर की शांति और बाहर का व्यवहार दोनों दिव्यता से भर जाते हैं। उन्होंने कहा कि केवल भौतिकता में आसक्त रहना अथवा आध्यात्मिक उन्नति के लिए घर परिवार की जिम्मेदारी से किनारा कर लेना यह दोनों ही जीवन के चरम छोर हैं। संतों ने हमेशा निर्लेप भावना से संसार में रहकर परमार्थ के मार्ग को अपनाते हुए संतुलित जीवन जीने की बात कही है। जीवन में यदि हम निराकार परमात्मा की उपस्थिति का एहसास करते हुए हर कार्य करते हैं तो वह निर्लेप प्रभाव से युक्त सेवा ही बन जाता है, जिससे जीवन के दोनों पहलुओं की पूर्ति हो जाती है। सतगुरु माता सुतीक्षा जी महाराज ने कहा कि एक निराकार परमात्मा ही है जो सदैव काल सत्य रहने वाला है। जब इस स्तोत्र के साथ जोड़कर सत्य के भाव में समाहित हो जाते हैं तो फिर कोई विपरीत भाव मन में उत्पन्न नहीं होता है। समागम का मुख्य विषय “आत्म मंथन“ भी इसी और अग्रसर करता है। समागम के चार दिनों में जो आत्म मंथन हो गया और जो दिव्य सीख प्राप्त हुई उसे दिन रात जीवन पर्यंत अपने जीवन में अपनाते हुए स्वयं का भी कल्याण करें और दूसरों का भी कल्याण करते जाएं।
राजापिता रमितजी ने अपने पावन विचार प्रकट करते हुए कहा कि परमात्मा एक सार्वभौमिक सत्य है जो पहले भी सत्य था, आज भी सत्य है, और आगे भी सत्य ही रहेगा। परमात्मा की पहचान करके ही सार्वभौमिक सत्य को जाना जा सकता है और जानने के उपरांत समझ में आता है कि यह परम सत्य प्रत्येक जीव के लिए एक ही है। इस सत्य को जानने का अधिकार हर मानव को है, इस परम सत्य का बोध करने के लिए ही सतगुरु धरा पर प्रकट होते हैं।
दूसरे दिन हरियाणा के महामहिम राज्यपाल प्रोफेसर असीम कुमार घोष ने अपनी अर्धांगिनी के साथ समागम में पधार कर सतगुरु माता जी एवं निरंकारी रात पिताजी का आशीर्वाद प्राप्त किया और उनके प्रति अपना आदर सम्मान प्रकट करते हुए कहा कि निरंकारी मिशन की दिव्य विचारधारा एवं मानवता के प्रति निष्काम सेवाओं की प्रशंसा की, वहीं निरंकारी सेवा दल के स्वयं सेवकों की मर्यादा एवं अनुशासन की भी सरहाना की।
समागम के तीसरे दिन हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी समागम में पधार कर सद्गुरु के आशीष प्राप्त किए। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि निरंकारी मिशन आत्म मंथन आत्म सुधार एवं समाज निर्माण का स्रोत है। यहां सारे भेदभाव से ऊपर उठकर मानव को मानव बनने की शिक्षा दी जाती है। आध्यात्मिक जागरूकता के साथ-साथ मिशन समाज कल्याण के कामों में भी अनुकरणीय योगदान दे रहा है जो अत्यंत सराहनीय है।



