सपनों का इवेंट : खर्च लाखों में, खुशियाँ मुट्ठी में
दुल्हन के सपनों में लुटता दूल्हे का संसार, विवाह नहीं, एक सामाजिक प्रतिस्पर्धा बनता जीवन का सबसे पावन संस्कार

दूल्हा दुल्हन का उक्त तमाशे में एनर्जी लेबल इतना डाउन हो जाता है कि सुहागरात सपनो की नही बरबादी की शुरुआत बनकर बरस जाती है और फिर आता है विवाह, विवाद का सच
’विवाह, जो कभी आत्मीयता, रिश्तेदारी और परंपरा का प्रतीक था, अब एक प्रदर्शन बन गया है। यह अब जीवन का एक ‘मोमेंट’ नहीं, बल्कि फिल्मी इवेंट, रील्स और सोशल मीडिया शो बन चुका है।
आज का विवाह यथार्थ से अधिक कल्पनाओं, दिखावे और बाजार की चमक से संचालित हो रहा है, जहाँ सबसे अधिक कीमत उन भावनाओं की चुकानी पड़ती है, जो कभी इस संस्कार की आत्मा हुआ करती थीं।
1. सामुदायिक भवन से रिसॉर्ट तक : दूरी केवल किलोमीटरों की नहीं, संस्कारों की भी है, पहले विवाह मोहल्ले या शहर के सामुदायिक भवनों, धर्मशालाओं, या मैरिज हॉल में होता था। अब ये स्थान “ग़रीबों के विवाह स्थल“ कहलाने लगे हैं।
समारोहों की दिशा अब शहरों से दूर रिसॉर्ट्स और फार्म हाउसों की ओर मुड़ चुकी है, जहाँ दो दिन पहले ही पूरा परिवार शिफ्ट हो जाता है और मेहमान सीधे वहीं पहुँचते हैं।
जो पास में चार पहिया वाहन नहीं रखते या जो बुज़ुर्ग हैं, उनके लिए इस शादी में पहुँच पाना ही कठिन हो जाता है। यह विवाह अब आमंत्रण से नहीं, सुविधा और हैसियत की पात्रता से तय होता है। अनेक तो शहरों में ही भटक जाते है। साधन ही नही मिलते।
2. निमंत्रण नहीं, चयन होता है
पहले शादी का निमंत्रण प्रेमपूर्वक, परिवार, रिश्तेदारों को दिया जाता था : “समस्त परिवार सहित पधारें।”
अब आमंत्रण वर्गीकृत होता हैः
किसी को सिर्फ संगीत में बुलाया जाता है,
किसी को कॉकटेल पार्टी के लिए,
किसी को मेहंदी तक सीमित रखा जाता है,
और कुछ ‘वीआईपी’ को हर कार्यक्रम में आमंत्रण मिलता है।
यह वर्गीकरण केवल आमंत्रण तक नहीं रुकता, भोजन, बैठने की व्यवस्था और स्वागत तक में भेद दिखता है। अपनापन पीछे छूट गया है, औपचारिकता और वर्ग-प्रदर्शन आगे आ गया है।
3. ’विवाह नहीं, इवेंट मैनेजमेंट है, कोरियोग्राफ्ड, स्टाइल्स फोटोजेनिक
आज की शादी एक थीम प्रोजेक्ट होती है :
ड्रेस कोड तय होता है : मेंहदी में पिंक या हरा, हल्दी में पीला, संगीत में ग्लैमरस।
पूरे परिवार को डांस सिखाने के लिए कोरियोग्राफर 15 दिन तक ट्रेनिंग देते हैं।
मेंहदी लगाने के लिए आर्टिस्ट, हल्दी लगाने के लिए प्लानर, और बाल-साज-सज्जा के लिए पूरे पार्लर बुक होते हैं।
डी जे एवं संगीत की महंगी प्लानिंग
जो निर्धारित पोशाक या रंग न पहने, वह “आउट ऑफ ट्रेंड“ मान लिया जाता है। धीरे-धीरे परंपरा ‘नकलीपन’ में बदल रही है।
4. प्री-वेडिंग शूट दृ प्री वेडिंग एंड शूटिंग की प्लानिंग कैमरे के सामने संस्कारों की बलि
अब विवाह से पहले जो सबसे ज़रूरी होता है, वह है प्री-वेडिंग शूट।
नवदंपत्ति की आलिंगन करती, फिल्मी अंदाज़ में पोज़ देती तस्वीरे, कभी चट्टानों पर, कभी कुएँ के पास, तो कभी श्मशान जैसे स्थानों में।
कपड़े, भाव, और पृष्ठभूमि, सब कुछ दिखावे के लिए रचा जाता है।
इन तस्वीरों को विवाह समारोह में एलईडी स्क्रीन पर सबके सामने प्रदर्शित किया जाता है और जो कभी विवाह के बाद धीरे-धीरे बनने वाला सम्मान और अपनापन होता था, वह अब विवाह से पहले ही पब्लिक रोमांस में बदल गया है।
5. स्टेज शोः धुएं, लाइट्स और आत्मीयता का गला घोंटता प्रदर्शन
अब वरमाला के मंच पर पहले की तरह माता-पिता, भाई-बहन नहीं होते।
होता हैः
धुएँ का इफेक्ट,
लाइट शो,
डीजे बीट्स,
और स्लो मोशन वॉक।
दूल्हा-दुल्हन फिल्मी अंदाज में वरमाला पहनाते हैं, और पारिवारिक एकता का मंच अब “कंटेंट प्रोडक्शन सेट“ बन गया है।
6. रिश्तेदार कमरे में, रिश्ते मोबाइल में
बड़े रिसॉर्ट्स में अलग-अलग कमरों में रहने से रिश्तेदार एक-दूसरे से मिल नहीं पाते।
कोई संगीत प्रैक्टिस में व्यस्त है, कोई सेल्फी में, और कोई रील बनाने में।
सभी आधुनिकता में व्यस्त हैं, पर एक-दूसरे की आत्मा से अनुपस्थित।
यहां तक कि पूरा आयोजन हो जाता है कौन ब्याई, कौन परिवार पता ही नहीं चलता। विवाह समारोह मतलब सभी रिश्तेदारों को आमंत्रण अनेक देश विदेश में होते है जो जीवन में पहली बार मिलते है, अनेक 20 से 25 साल बाद एक जगह पर होते है पर पहचान और परिचय तक नहीं हो पाता।
एक समय था जब विवाह मिलन का माध्यम था, अब वह अलगाव का कारण बनता जा रहा है।
7. खर्च की चकाचौंध, बाद में कर्ज की आँधी
मध्यम वर्गीय परिवार भी इस अंधी दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहते।
लाखों रुपये खर्च कर, गहने बेचकर या कर्ज लेकर “हम भी कम नहीं” साबित करने की होड़ में लग जाते हैं।
रिसेप्शन की 4-5 घंटे की रोशनी में लोग सालों की कमाई बहा देते हैं।
लेकिन याद रखिए, महमान तारीफ करेंगे, लिफाफा थमाएंगे और अगले दिन अगली शादी में चले जाएंगे।
8. दुल्हन के सपनों में खोता दूल्हे का यथार्थ
शादी अब एक लड़की के “ड्रीम वेडिंग“ की कहानी बन गई है।
हर ड्रेस, हर पोज़, हर एंट्री, डिज़नी की परी कथा जैसी चाहिए।
लेकिन उस सपने को पूरा करने में कभी-कभी दूल्हे और उसके परिवार का यथार्थ चूर हो जाता है, कर्ज़, तनाव, दिखावे की थकान और रिश्तों की दूरी।
9 और भी है दिखावे
भव्य सेट
मीनू की विशालता, बीमारियों का मकड़जाल
गीत, गजल, संगीत और एंकर की भूमिका
10. विवाह योग्य उम्र पर कमाने और जोड़ने में विवाह की उम्र ही निकले जा रही है बच्चे मानसिक तनाव में जी रहे है।
निष्कर्षः क्या यह विवाह है, या स्वप्नलोक में डूबा भ्रम?
क्या विवाह अब केवल दिखावा, फोटो, वीडियो और रीलों की एक प्रतियोगिता बन गया है?
क्या हम वाकई अपने संस्कारों को समृद्ध कर रहे हैं या उन्हें ‘ट्रेंड्स’ के नाम पर बेच रहे हैं?
एक बार विचारियेगा
आपने क्या पाया
क्या अपनो से मिल पाए
क्या दूल्हा दुल्हन एक दूजे के हो पाए
क्या निजता और प्रेम से आपस में बात हुई
आपसे अपील
जितनी हैसियत हो, उतना ही खर्च करें।
विवाह को एक आत्मीय आयोजन बनाएँ, न कि मेगा इवेंट।
बुज़ुर्गों, रिश्तेदारों और आत्मीय लोगों को प्राथमिकता दें।
अपने बच्चों को दिखावे की नहीं, संवेदना और संस्कृति की शिक्षा दें।
दांपत्य जीवन दिखावे से नहीं, समझ और सम्मान से चलता है।
अपने क्षेत्र के युवाओं एवं समाज बंधुओ के मिलन एवं सामाजिक जागरूकता हेतु तिथि तय करे। तकनीकी विकास समिति के कार्यालय की सेवाओं का लाभ ले और एक सफल आयोजन बहुत कम खर्चे में सुनिश्चित करे। अपने यहां युवक युवती मिलन, सामाजिक बदलाव, जागरूकता हेतु खंडेलवाल तकनीकी विकास समिति के ठाकुर जी को निमंत्रण भेजे, फिर देखिए चमत्कार।
इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए हो सके तो उन्हें भी सामाजिक बनाइए। मध्यम वर्गीय परिवार इसे देखकर ललचाए नहीं, खुद को और अपने भविष्य को बर्बाद न करें।
स्वाभिमान से, आत्म-सम्मान से और अपने संस्कारों के साथ विवाह करें, क्योंकि विवाह ‘इवेंट’ नहीं, जीवन का आधार है।
डॉ अशोक खण्डेलवाल चिकित्सा संसार
9399008071



