धर्म-अध्यात्म

यह भारत अब न केवल सुनता है, बल्कि संकल्प करता है और संहार भी करता है

सनातन संस्कृति के गौरव और भारत की वीरता पर मुनिश्री विनम्रसागरजी ने दिया ओजस्वी उद्बोधन

विशाल जनसमूह की उपस्थिति में उज्जैन में संपन्न हुआ विशेष प्रवचन कार्यक्रम
उज्जैन। दिगंबर जैन पंचायती मंदिर, फ्रीगंज में रविवार, 11 मई को मुनिश्री 108 विनम्रसागरजी महाराज का विशेष उद्बोधन “हिंदू शौर्य, अस्मिता, गौरव संस्कृति एवं न्यायोचित वीरता के उन्नयन” विषय पर आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम संत सत्कार समिति, उज्जैन एवं विद्या विनम्र प्रवास समिति द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें उज्जैन सहित आस-पास के हजारों सनातन धर्म प्रेमियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
मुनिश्री ने अपने उद्बोधन में भारत के गौरवशाली इतिहास, सनातन संस्कृति की नींव, और समसामयिक भारत की राष्ट्रनीति को अद्वितीय ओज के साथ प्रस्तुत किया। कश्मीर के हालिया आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा दी गई वीरतापूर्ण प्रतिक्रिया का संदर्भ लेते हुए मुनिश्री ने कहा, “यह भारत अब न केवल सुनता है, बल्कि संकल्प करता है और संहार भी करता है।“ मुनिश्री ने वीर सैनिकों के त्याग को नमन करते हुए मातृभूमि की रक्षा को सर्वोपरि बताया।
अपने प्रवचन में मुनिश्री ने वैदिक कालीन ‘नाद’ पर विशेष प्रकाश डालते हुए कहा कि “वेदों में ऐसे मंत्र लिखे थे, जिनका नाद निकालने से ब्रह्मा तक आकर्षित होते थे। उसका वाइब्रेशन, उसकी ट्यून, उसकी लय कृ सब कुछ ब्रह्मांड में फैलता था। यह ‘नाद’ सनातन धर्म की आत्मा है, जिससे भौतिक और आध्यात्मिक जगत की चेतना सुदृढ़ होती थी।”
मुनिश्री ने कहा कि भारत वह भूमि है जहाँ सिंधु घाटी सभ्यता में हजारों वर्षों पहले नगर तो थे, लेकिन कोई हथियार नहीं था। यह अपने आप में ‘शांति की संस्कृति’ का प्रतीक है।
धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा और सामाजिक चेतना का आह्वान
मुनिश्री ने उपस्थित जनसमूह को अपने विचारों से झकझोरते हुए कहा कि सनातनी समाज को अपनी सांस्कृतिक पहचान, पारिवारिक मर्यादा और सामाजिक उत्तरदायित्व को पुनः जागृत करना होगा। उन्होंने कहा कि घर के आँगन में गाय न हो और मन में भय हो कृ यह सनातन संस्कृति की विफलता का संकेत है।
मुनिश्री ने मंदिरों के निर्माण को केवल ईश्वर पूजन का स्थान नहीं, बल्कि आर्थिक-सामाजिक पुनर्गठन का केंद्र बताया। उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण से निचले तबके तक धन का प्रवाह होता है। यह “परस्पर उपग्रहो जीवानाम्” की साक्षात अभिव्यक्ति है।
भविष्य की चेतावनी और युवा पीढ़ी से अपेक्षा
मुनिश्री ने चेतावनी दी कि यदि हमने समय रहते जनसंख्या संतुलन, सामाजिक एकता और धार्मिक पहचान को मजबूत नहीं किया, तो भारत की सांस्कृतिक अस्मिता खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे मात्र आधुनिकता में न उलझें, बल्कि अपने धर्म और देश के गौरव को समझें और निभाएँ। पूरे प्रवचन के दौरान श्रद्धालु भावविभोर होकर मुनिश्री की वाणी में डूबे रहे। ‘जय श्रीराम’, ‘भारत माता की जय’ और ‘जय जिनेन्द्र’ के घोषों से वातावरण बार-बार गुंजायमान होता रहा।
कार्यक्रम के अंत में संत सत्कार समिति द्वारा सभी श्रद्धालुओं से अपील की गई कि वे इस प्रकार के जागरण में सतत सहभागिता करें एवं मुनिश्री के प्रतिदिन प्रातः 9 बजे हो रहे प्रवचनों का लाभ लें। मुख्य अतिथि श्रीपाद जोशी अखिल भारतीय सचिव – संस्कार भारती रहे। कार्यक्रम का संचालन संयमित और प्रभावशाली रूप में ज्योति अवतंस जैन एवं संत सत्कार समिति के अरविन्द कासलीवाल द्वारा किया गया।

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