समाज संसार
महान योद्धा वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर हुई थी
समग्र राजपूत सरदार मनाएंगे वीर दुर्गादास जयंती

उज्जैन। मारवाड़ राज्य के राठौड राजपूत सेनापति रहे क्षत्रीय वीर दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638- 22 नवंबर 1718) की 387वीं जयंति पर समग्र राजपूत सरदारों द्वारा प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी 13 अगस्त को प्रातः 9 बजे क्षिप्रा तट उज्जैन पर चक्रतीर्थ के समीप श्रद्धांजलि एवं पूजन अर्चन किया जायेगा।
कार्यक्रम संयोजक भरत सिंह हाड़ा ने बताया कि महान योद्धा वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर हुई थी। लाल पत्थर से बनी उनकी छत्री आज भी चर्कतीर्थ के समीप उज्जैन में क्षिप्रा तट पर स्थित है, जो सभी राजपूत सरदारों एवं अन्य समाजों के लिए श्रद्धा का तीर्थ है। सभी राजपूत सरदारों व गणमान्य नागरिकों से अपील है कि अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज करायें तथा उनकी पुण्य स्मृति में श्रृद्धासुमन अर्पित करें।
भरत सिंह हाड़ा के अनुसार वीर दुर्गादास राठौड़ को 17वीं शताब्दी में महाराज जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद मारवाड़ अंचल के अस्तित्व एवं विभिन्न छत्तीस-कौम को अक्षुण्ण बनाएं रखने का श्रेय दिया जाता है। ऐसा करने के लिए उन्हें मुगल बादशाह औरंगजेब की अवहेलना करनी पड़ी थीं। दुर्गादास राठौड़ ने ऐतिहासिक युद्ध (1679-1707) के दौरान राठौड़ सेना की कमान संभाली और 1708-1710 के राजपूत विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई, जो मुगल साम्राज्य के पतन का एक मुख्य कारण बन गया। उन्हें जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय के साथ विद्रोह का नेता चुना गया था। उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई जीत हासिल की ओर कई मुगल अधिकारियों को उन्हे श्रद्धांजली देने के लिए मजबूर किया। उन्होंने औरंगजेब की मुगल सेना द्वारा नष्ट किए गए बड़ी संख्या में मंदिरों का पुनर्निमाण किया। उन्होंने हिन्दुओं को औरंगजेब के अत्याचारों के खिलाफ खड़े होने का साहस भी दिया। दुर्गादास ने अपने कर्तव्यों को सफलतापूर्वक करने के बाद जोधपुर छोड़ दिया और कुछ समय तक सादड़ी, उदयपुर, रामपुरा, भानपुरा में रहे, और फिर अंतिम समय उज्जैन में निर्वहन किया।