संस्कृत महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने जानी आसाम की पारम्परिक मुखौटा निर्माण शैली
’समरस कला शिविर’ में विद्यार्थियों ने किया शैक्षणिक-भ्रमण

उज्जैन। शासकीय संस्कृत महाविद्यालय के आन्तरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के अन्तर्गत आधुनिक भाषा विभाग द्वारा कालिदास अकादमी में 4 से 13 मार्च तक आयोजित ’समरस कला शिविर’ में विद्यार्थियों के लिये शैक्षणिक-भ्रमण का आयोजन किया गया।
प्राचार्य डॉ. सीमा शर्मा ने बताया कि भारतीय ज्ञान परम्परा में शिल्प का अद्वितीय स्थान है। विद्यार्थियों को भारतवर्ष की प्राचीन शिल्पविधाओं से अवगत कराने के लिये इस शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन किया गया। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. श्रेयस कोरान्ने ने बताया कि आसाम राज्य की पारंपरिक मुखौटा निर्माण शैली का सम्बन्ध असमिया ’भावना’ नामक नाट्यविधा से है। प्रसिद्ध सन्त श्रीमंत शंकरदेव ने भारतीय नाट्यशास्त्रीय परम्परा के अनुरूप इस शिल्पविधा का प्रवर्तन किया था। उन्होंने 500 वर्ष पूर्व इसके माध्यम से पूर्वोत्तर के क्षेत्र में कला और संस्कृति का संवर्धन किया। आयोजन में शिविर संयोजक डॉ. संदीप नागर और आसाम के माजुली से आये खगेन गोस्वामी आदि शिल्पकारों ने भी उपस्थित विद्यार्थियों को पूर्णतः प्राकृतिक इस मुखौटा शैली की विशेषताओं के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान की। इस अवसर डॉ. सदानन्द त्रिपाठी, डॉ. योगेश्वरी फिरोजिया एवं अकादमी के निदेशक डॉ. गोविन्द गन्धे का भी मार्गदर्शन उपस्थित विद्यार्थियों को प्राप्त हुआ।