धर्म-अध्यात्म

विघ्नेश्वर महादेव मंदिर में हुआ दीप महायज्ञ

संस्कारवान, नशामुक्त आदर्श युवा ही सच्चे राष्ट्र निर्माता-सूरत सिंह अमृते

उज्जैन। महाकाल की नगरी में अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ एवं श्रीमद् भागवत प्रज्ञा पुराण कथा करने के लिए आए कथा व्यास ’’श्री सूरत  अमृते जी’ ने यज्ञ में नामकरण, विद्याराम, पुंसवन एवं गायत्री महामंत्र से दीक्षा संस्कार करवाया।
उर्मिला तोमर के अनुसार मुख्य अतिथि के रूप में निगम सभापति कलावती यादव के द्वारा विशेष पूजन और आरती संपन्न हुई। विघ्नेश्वर महादेव मंदिर में दीप महायज्ञ संपन्न हुआ। जिसमें अमृते जी के नेतृत्व में शांतिकुंज हरिद्वार से कर्मकांड करने आए आचार्य गोपाल मालवीय, सुनील बंशीधर और संगीत में नीरज विश्वकर्मा ने यज्ञ के कर्मकांड संपन्न किया। शाम को तीसरे दिन की कथा में बताया कि मनुष्य के जीवन में दुख सुख का कारण उसकी अपनी सोच होती है। ’संत इमर्शन कहते हैं मनुष्य की एक मुट्ठी में स्वर्ग है और एक मुट्ठी में नर्क है अगर वह पॉजिटिव सोचता है तो उसका घर स्वर्ग बन जाता है और निगेटिव सोचता है तो उसका जीवन नर्क होता हुआ चला जाता है। इसलिए जब मनुष्य अचिंत चिंतन करता है तो उसके जीवन में वह बेचैन हो जाता है। अगर मनुष्य को सुखी रहना है तो अपनी सोच को बदलना होगा। जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं वह सब अपनी सोच के कारण हुए। अपने ऊंचे खयालात के कारण, ऊंचे विचारों के कारण हुए हैं और मनुष्य को भगवान का राजकुमार कहा जाता है और यह सृष्टि उसकी बगिया है, वह उसका माली है, अगर वह ऊंचा सोचता है तो उसकी बगिया फूलों से भर जाती है उसका जीवन सद्गुणों से लहला उठता है। स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं दुनिया में भगवान और देवियां कहीं नहीं है हमारा दृष्टिकोण अच्छा है तो दुनिया की हर नारी के अंदर नौ देवियां है दुर्गा सरस्वती लक्ष्मी काली महागौरी है वही लक्ष्मी है नारी ही सरस्वती है हम बुरा सोचते हैं तो हमारे कर्म भी बुरे होते हैं। तो उसका फल भी हमको बुरा ही भोगना पड़ता है। कर्म के फल से ना आज के समय में कोई सेठ बच सकता है ना कोई साहूकार बच सकता है, ना कोई नेता अभिनेता बच सकते हैं, ना कोई साधु संत बच सकता है। कर्मों के फल से ना बचोगे चलना बहुत संभाल के। अभी समय है अभी बदल लो तेवर अपनी चाल के। इसलिए आज दुनिया वालों को समझाना होगा कि अच्छा फल चाहते हैं तो कर्म अच्छा करें।
यज्ञ का मतलब होता है सत्कर्म यज्ञ कुंड में नहीं यज्ञ मुंड में होता है और जिन ने यज्ञ का भाव समझ लिया उन्होने भरी जवानी की आहुति राष्ट्र की बलि वेदी पर समर्पित कर दिया और हमारे देश को आजाद करा दिया। हम समाज को अच्छी दिशा दें अच्छी सोच दें अच्छे विचार दें इसी के लिए श्रीमद् भागवत प्रज्ञा पुराण की कथा यहां पर हो रही है। देना है तो किसी को उत्साह दें, उल्लास दें, उमंग दें और समाज को समय की आवश्यकता है, हम लोग स्वयं स्वच्छता अभियान चलाएं हरिद्वार से आए व्यास श्री अमृते जी ने कहा आज छोटे-छोटे बच्चे नशा कर रहे हैं नशा से उनको मुक्त कराना है नशा बड़ा घातक है। नशा हम नहीं खाते नशा हमें खा जाता है और आज हर दिन हमारे देश में 72 अरब रुपए सिर्फ नशा में बर्बाद हो रहा है और वही नशा हमको अल्सर, कैंसर जैसी बीमारी दे रहा है। इसलिए सभी भाइयों बहनों से नशा छोड़ने की अपील की गई और भाई बहनों को नशा, क्रोध, आलस जीवन की कोई एक बुराई छोड़ने का संकल्प कराया गया और इसी के साथ में श्रीमद्भागवत प्रज्ञा पुराण कथा का समापन हुआ। जिसमें बड़ी संख्या में भाई बहनों ने भाग लिया जिसमें हमारे सभी भाइयों ने बहनों ने बहुत सहयोग किया।

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