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यूँ शुरू हुआ था विक्रम महोत्सव ! विक्रम भारत का सोया हुआ पराक्रम था

26 फरवरी से 30 जून तक , उज्जैन में 125 दिवसीय विक्रमोत्सव पर विशेष

राजशेखर व्यास ( लेखक ,चिंतक एवं पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियो )

भारत ग़ुलाम था, और हमें इतिहास में पढ़ाया जा रहा था कि हम सदियों से ग़ुलाम रहें हैं, कभी शक और हुन् के, कभी मुग़ल और कभी अंग्रजों के हम सदियों से लूटे पिटे हारे थके जूँवारी हैं। पाँच सौ साल हम पर मुग़लो ने शासन किया और दो सौ साल से अंग्रेज़ हम पर शासन करते आ रहें थे!
यह बात हैं १९४० के आसपास की उज्जयिनी के क्रांतिकारी युवा सूर्यनारायण व्यास ने, जिनका प्रचलित संवत् भी धीरे धीरे लोग भूलते जा रहें थे। इतिहास से ऐसे पराक्रमी चरित्र “ विक्रम” के नाम पर उज्जयिनी से एक मासिक पत्रिका “ विक्रम “ का प्रकाशन आरम्भ किया चूँकि उनका अपना प्रिंटिंग प्रेस था जहाँ से वे अपने पूज्य पिता महा महोपाध्याय पंडित नारायण व्यास जी के नाम पर “ नारायण विजय पंचांग“ अपने छोटे भाई के साथ प्रकाशित करते ही थे! पर विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने जा रहें थे और विक्रमादित्य के नाम पर राष्ट्र में कोई हलचल नहीं थी उन्होंने विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने पर “ विक्रम द्वि सहस्त्राब्दी महोत्सव “ की योजना बनायी और प्रथ्वीराज कपूर को ले कर सारे राष्ट्र में जागृति फैलाने “ विक्रमादित्य “ फ़िल्म का निर्माण शुरू कर दिया।
सारे देश में उनकी इस योजना का सम्यक् स्वागत हुआ उन्हें सबसे पहले कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी से सहयोग मिला, महाराजा देवास ने योजना सुन कर कहा सारे सूत्र उनके हाथ में रहें तो वे सहयोग देंगे तब तक वीर साँवरकर ने भी अपने पत्र में इस योजना की प्रशंसा कर दी चूँकि पंडित सूर्यनारायण व्यास आज़ादी के पहले ११४ स्टेट के राज्य ज्योतिषी भी थे उनकी इस योजना का सारे देश में सम्यक् स्वागत हुआ और महाराजा ग्वालियर ने उन्हें ग्वालियर बुला भेजा। चार दिन घंटों घंटों विचार विमर्श हुआ और अंत में व्यास जी के सुझाव पर उज्जयिनी से ले कर मुंबई तक विक्रम महोत्सव मनाना स्वीकार हुआ। व्यास जी विक्रम के नाम पर एक विश्विद्यालय, शहर में एक भी भव्य सभागार नहीं था पहले भी प्रथ्वीराज कपूर आये थे तो महाराजवाडॉ, रीगल टाकीज, कैलाश टाकीज में पैसा पठान दीवार नाटक खेल समारोह के लिए चन्दा एकत्र किया गया था तो विक्रम के नाम पर एक भव्य सभागार “विक्रम कीर्ति मंदिर “ बनाने का विचार किया।
मैथिली शरण गुप्त ने अपने हस्त लेख में – दो हज़ार संवत्सर बीते हैं / निज विक्रम बिना हम मरे मरे जीते हैं / नित्य नये शक और हूँन हमारे जीवन रस पीते हैं, होकर भी हुए क्या हम उनके मन चीते हैं? / भविष्यदृष्टा व्यास जी जानते थे दस साल के अंदर हम स्वतंत्र तो हो जायेंगे पर स्वतृंतता उपरांत भी मानसिक ग़ुलामी और सांस्कृतिक दासता से मुक्त नहीं हो पायेंगे। प्रखर पत्रकार क्रांतिकारी पंडित व्यास ने वर्ष १९४२ में उज्जैन से “ विक्रम”मासिक आरम्भ किया और उसके माध्यम से सारे राष्ट्र के सोये पराक्रम को जगाने का उपक्रम किया विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने पर ११४ राजा महाराजा इक्ट्ठा कर विक्रम महोत्सव मनाना आरंभ किया आज उज्जयिनी में स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर उनके इसी महान अवदान की कीर्ति गाथा हैं।
विक्रम की प्रमाणिकता ऐतिहासिकता पर पंडित सूर्यनारायण व्यास निरंतर लिख कर अंग्रेज़ इतिहासकारों को मुंहतोड़ उत्तर दे ही रहे थे, विक्रम कीर्ति मंदिर स्थापित कर उन्होंने महाकाल मंदिर में उज्जयिनी की पहली खुदाई से प्राप्त पुरातत्व प्रमाण रखवाये थे वे अपने ही काल में ख़ुद के द्वारा स्थापित सिंधिया शोध प्रतिष्ठान विगत वर्षों में महाकाल में रखवायी सारी प्रतिमाओं का संग्रहालय बना दिया, बाद के काल में उनके सुयोग्य शिष्य डॉ विष्णु श्री धर वाकनकर ने विक्रम के काल की सोने की मुद्रा खोज कर उनकी शोध को प्रमाणिकता ही दी। अब उनका लक्ष्य विक्रम को जन जन तक पहुचाना था तो उन्होंने प्रथ्वी राज कपूर को प्रेम अदीब रत्न माला बाबूराव पेंढ़ारकर को ले कर “विक्रमादित्य“ विजय भट्ट के निर्देशन में बनायी। इस फ़िल्म ने रजत जयंती मनायी। आज की नई पीढ़ी तो संभवतः कल्पना भी नहीं कर सकती की कैसे सारी उज्जयिनी नगरी दुल्हन की तरह सज धज गई थी अपने निज विक्रम के स्वागत के लिये सारा नगर रंग बिरंगी पताकाओ से सज गया जिस पर पराक्रमी विक्रम का चित्र था, वही चित्र जो बाद के काल में विक्रम का मुख पृष्ठ और संपादकीय पृष्ठ का चित्र बनता सजता सँवरता रहा। सारे देश में घूम घूम कर महान विद्वान लोगो से विक्रम, कालिदास, उज्जयिनी पर शोध लेख लिखवाये गये जिनमे महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन, डॉ भगवत शरण उपध्याय वि वा मीराशी, वासुदेव शरण अग्रवाल, डी सी मजूमदार जैसे असंख्य महान नाम हैं हृदय हमारें / हाथ हमारे रिते हैं, जो विक्रम स्मृति ग्रंथ में व्यास जी ने सबसे आगे प्रकाशित की। यूँ व्यास जी के अनुरोध पर इस से पूर्व कविवर रवींद्रनाथ टेगोर उज्जयिनी कविता लिख चुके थे और उज्जयिनी भारती भवन रहते हुए नागार्जुन – कालिदास सच सच बतलाना, अज रोया था या तुम रोये थे लिख चुके थे।
विक्रम स्मृति ग्रंथ कैसे तैयार हुआ उसके बारे में डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाते थे उन दिनों वे ग्वालियर में क्वींस विक्टोरिया कालेज में थे और महापंडित राहुल जी आये हुए थे। चालीस बरस के सूर्यनारायण व्यास विक्रमादित्य फ़िल्म के सेट से दिल्ली आये और दिल्ली से सड़क मार्ग से ग्वालियर आ कर राहुल जी को पकड़ा -विक्रम पर आपका लेख लिये बग़ैर नहीं जाऊँगा! डॉ सुमन बड़े गर्व से और चाव से बताते थे -राहुल जी हमारी हॉस्टल के बरामदे में ईक गमझा मुँह पर ओढ़ कर बैठ गये – मैं बोलता हूँ सुमन लिखेगा और आज आप विक्रम पर मेरा लेख ले कर ही जाएँगे व्यास जी ! डॉ सुमन बताते थे वे दो घंटे आँख पर गमछा डाले बोलते रहें मैं लिखता रहा और यूँ – त्रिविक्रम ! लेख तैयार हुआ , सुमन जी बताते थे कैसे व्यास जी सारा खाना पीना छोड़ कर दीवाने की तरह विक्रम महोत्सव और कालिदास समारोह के लिये सारे देश में दौड़ते फिरते थे।
विक्रमादित्य फ़िल्म में काम करने के बदले प्रथ्वी राज कपूर ने व्यास जी की मित्रता वश कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था, व्यास जी उनका यह कर्ज उतारा जब प्रथम राष्ट्रपति ने पंडित सूर्य नारायण व्यास को “ पद्मभूषण “ साहित्य शिक्षा संस्कृति में योगदान के लिये प्रदान किया तो वे चाहते थे व्यास जी राज्य सभा में भी आये वाहन बालकृष्ण शर्मा नवीन मैथिली शरण गुप्त पहले ही मौजूद थे, व्यास जी ने इस अनुरोध को यह कह कर बाबू से पृथ्वी राज कपूर के लिए मौड़ दिया की बाबू! कला जगत से अब तक आपने किसी को राज्य सभा में सम्मान दिया नहीं हैं और इस तरह पृथ्वीराज कपूर राज्य सभा में ससम्मान विराजमान हुए।
इस भव्य आयोजन से जुड़े कुछ दर्दनाक मर्मनाक पहलू भी हैं मसलन लॉर्ड वेवल जिन्ना के विरोध के कारण राजा महाराजों ने आयोजन से हाथ खेंच लिए जिन्ना ने साँवरकर के आयोजन की प्रशंसा से चिढ़ कर इसे हिंदू आयोजन बता कर विरोध किया जबकि विक्रमादित्य भारत के सोए पराक्रम को जगाने का नाम था, लॉर्ड वेवल ने इसे अंग्रेज़ विरोधी मानकर महाराजा सिंधिया से विरोध जताया। तब घनश्याम दास बिरला द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय के लिए भेजे दस लाख रुपये जो उज्जयिनी के आयोजन के लिए ईयर मार्क थे उससे ग्वालियर में मेडिकल कालेज बना लिया गया इतना ही नहीं ग्वालियर से ज़्यादा पैसा मालवा का था सर सेठ हुकुमचंद द्वारा व्यास जी के अनुरोध पर फिर एक बड़ी रकम दी गई जिस से विक्रम विश्वविद्यालय बना पर इस अचानक आए विरोध और अवरोध से पूर्व विक्रम विश्व विद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर, विक्रम स्मृति ग्रंथ का काम तो हो गया था, मगर विक्रम स्मृति स्तम्भ का काम रह गया जो आज तक बना नहीं। उम्मीद ही नहीं विश्वास हैं प्रिय यशस्वी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जैसे उज्जयिनी का मेडिकल कालेज ले आए “विक्रम समृति स्तंभ“ भी एक दिन बना ही देंगे!
कवि कालिदास फ़िल्म तो आज भी यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं जिसमे पंडित सूर्यनारायण व्यास के महान योगदान का भारत भूषण के स्वर में उल्लेख किया गया हैं बाद के काल में पद्म भूषण पंडित व्यास के प्रयास से डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस फ़िल्म को सारे देश में टेक्स फ्री कर दिया था।
नई पीढ़ी संवत् २००० में मनाए इस भव्य तम विक्रम महोत्सव का इतिहास जाने और जाने की आज उसकी स्मृति में खड़े विक्रम विश्विद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर और संसार का महान ग्रंथ उपलब्ध हैं – विक्रम स्मृति ग्रंथ!
राजशेखर व्यास ( लेखक ,चिंतक एवं पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियो )

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