पाठशाला
भारतीय संस्कृति में गौरैया का गृह आगमन शुभ- प्रोफेसर श्रीवास्तव
विश्व गौरैया एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस पर विशिष्ट व्याख्यान

उज्जैन। विश्व गौरैया एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस पर प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय की प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में किया गया।
विभाग में डॉ. मनमोहन प्रकाश श्रीवास्तव, पूर्व विभागाध्यक्ष, प्राणिशास्त्र विभाग, होलकर विज्ञान महाविद्यालय ने व्याख्यान के माध्यम से विद्यार्थियों से चर्चा की। अपने व्याख्यान में प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गौरैया बहुत ज़रूरी हैं, ये पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देती हैं और जैव विविधता को बढ़ाने में मदद करती हैं। उन्होंने बताया कि गौरैया की वजह से पर्यावरण स्वस्थ रहता है और कीड़ों की आबादी नियंत्रण में रहती है।
गौरैया का सांस्कृतिक महत्व भी है इसे कई संस्कृतियों में प्रतीकात्मक पक्षी माना गया है। ग्रीक पौराणिक कथाओं में गौरैया को प्रेम और अपने परिवार के प्रति समर्पण का प्रतीक माना गया है, बाइबिल में इसे ईश्वर का प्रतीक माना गया है और हिन्दू मान्यता के अनुसार गौरैया का गृह आगमन शुभता का सूचक है।
अपनी बात को बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि ये अति विशिष्ट एवं खूबसूरत संयोग है कि विश्व गौरैया दिवस और प्रसन्नता दिवस साथ में हैं, क्योंकि पक्षी प्रकृति का एक अभिन्न अंग है और इन्हें देख कर प्रसन्नता एवं सुख की अनुभूति होती है किन्तु इस प्रसन्नता को बनाए रखने के लिए गौरैया का संरक्षण आवश्यक है।
इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अर्पण भारद्वाज ने बताया कि गौरैया की घटती संख्या को रोकने के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा जैव विविधता के संरक्षण का महत्व समझना हमारी युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक है ताकि वे इसकी संरक्षण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। युवाओं से संवाद स्थापित करते हुए कुलगुरु ने कहा कि आज के युवा के लिए लाईफ स्टाईल को देखते हुए ये अत्यंत आवश्यक हो गया है कि वह प्रसन्न रहे, अगर युवा स्वयं प्रसन्न रहेगा तभी वो प्रसन्नता बाट पाएगा और अपने शिक्षण एवं शोध में रचनात्मकता ला पाएगा। विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कुलपति ने उन्हें ऐसे कार्य करने के लिए निर्देशित किया जिससे उनके शरीर में “हैप्पी हार्मोन“ बने और वे इस हैप्पीनेस को आगे बाट पाए। इस अवसर पर विभागाध्य डॉ सलिल सिंह के साथ विभाग के शिक्षक डॉ संतोष कुमार ठाकुर, डॉ स्मिता सोलंकी, डॉ गरिमा शर्मा, डॉ शिवी भसीन एवं डॉ शीतल चौहान ने प्रोफेसर श्रीवास्तव और कुलगुरु को धन्यवाद दिया। कार्यक्रम का संचालन समर्थ खरे ने किया एवं आभार डॉ पूर्णिमा त्रिपाठी ने माना।
विभाग में डॉ. मनमोहन प्रकाश श्रीवास्तव, पूर्व विभागाध्यक्ष, प्राणिशास्त्र विभाग, होलकर विज्ञान महाविद्यालय ने व्याख्यान के माध्यम से विद्यार्थियों से चर्चा की। अपने व्याख्यान में प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गौरैया बहुत ज़रूरी हैं, ये पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देती हैं और जैव विविधता को बढ़ाने में मदद करती हैं। उन्होंने बताया कि गौरैया की वजह से पर्यावरण स्वस्थ रहता है और कीड़ों की आबादी नियंत्रण में रहती है।
गौरैया का सांस्कृतिक महत्व भी है इसे कई संस्कृतियों में प्रतीकात्मक पक्षी माना गया है। ग्रीक पौराणिक कथाओं में गौरैया को प्रेम और अपने परिवार के प्रति समर्पण का प्रतीक माना गया है, बाइबिल में इसे ईश्वर का प्रतीक माना गया है और हिन्दू मान्यता के अनुसार गौरैया का गृह आगमन शुभता का सूचक है।
अपनी बात को बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि ये अति विशिष्ट एवं खूबसूरत संयोग है कि विश्व गौरैया दिवस और प्रसन्नता दिवस साथ में हैं, क्योंकि पक्षी प्रकृति का एक अभिन्न अंग है और इन्हें देख कर प्रसन्नता एवं सुख की अनुभूति होती है किन्तु इस प्रसन्नता को बनाए रखने के लिए गौरैया का संरक्षण आवश्यक है।
इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अर्पण भारद्वाज ने बताया कि गौरैया की घटती संख्या को रोकने के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा जैव विविधता के संरक्षण का महत्व समझना हमारी युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक है ताकि वे इसकी संरक्षण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। युवाओं से संवाद स्थापित करते हुए कुलगुरु ने कहा कि आज के युवा के लिए लाईफ स्टाईल को देखते हुए ये अत्यंत आवश्यक हो गया है कि वह प्रसन्न रहे, अगर युवा स्वयं प्रसन्न रहेगा तभी वो प्रसन्नता बाट पाएगा और अपने शिक्षण एवं शोध में रचनात्मकता ला पाएगा। विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कुलपति ने उन्हें ऐसे कार्य करने के लिए निर्देशित किया जिससे उनके शरीर में “हैप्पी हार्मोन“ बने और वे इस हैप्पीनेस को आगे बाट पाए। इस अवसर पर विभागाध्य डॉ सलिल सिंह के साथ विभाग के शिक्षक डॉ संतोष कुमार ठाकुर, डॉ स्मिता सोलंकी, डॉ गरिमा शर्मा, डॉ शिवी भसीन एवं डॉ शीतल चौहान ने प्रोफेसर श्रीवास्तव और कुलगुरु को धन्यवाद दिया। कार्यक्रम का संचालन समर्थ खरे ने किया एवं आभार डॉ पूर्णिमा त्रिपाठी ने माना।