धर्म-अध्यात्म
भगवान ने अपने मान, अहंकार का नाश कर दिया, हम मान, अहंकार को महत्व देते हैं
श्री पार्श्वनाथ पंचायती मंदिर में सभा में बोले मुनि श्री 108 विनम्र सागर महाराज

संसार में जिसे हम सुख मान रहे हैं वह भ्रम जाल है
उज्जैन। तीर्थंकर परमेष्ठी के 1008 नाम होते है जो उनके गुणों को बताते हैं। पर हम उन गुणों से सर्वथा अछूते लोग हैं, हम कैसे अछूते हैं जहां भगवान ने अपने मान का नाश कर दिया है, अहंकार का नाश कर दिया है, वहां हम बिना मान के जीवन जी ही नहीं सकते हैं क्योंकि हम अपने जीवन में अहंकार को महत्व देते हैं, आगम में जो लिखा है उसके विपरीत अपना जीवन जीते हैं और इसीलिए हम संसार में टीके हुए हैं, संसार से पार नहीं होते। हमारी संपर्क में आते व्यक्ति को चोट पहुंचाने की आदत सी हो गई है, हमारी प्रवृत्ति अहंकार की हो गई है और हमारा अहंकार इतनी आसानी से नीचे नहीं उतरता, जितनी आसानी से हम सीढ़ीयो से नीचे उतर जाते हैं अतः यह अहंकार महा दुःख दाईं है सर्वथा त्याज्य है।
उक्त उद्बोधन मुनि श्री 108 विनम्र सागर जी महाराज ने श्री पार्श्वनाथ पंचायती मंदिर में व्यक्त करते हुए कहा कि हम संसारी जीवों के सुख की स्थिति भी क्या है हमारा सुख स्वयं उत्पन्न नहीं होता, दूसरे के निमित से उत्पन्न होता है, बाधा के साथ उत्पन्न होता है, सुख आता है पर स्थिर नहीं रहता है, विच्छेद हो जाता है और वह हमारे बंध का कारण होता है, वह सुख क्षण भंगुर होता हैं वास्तव में संसार में जिसे हम सुख मान रहे हैं वह भ्रम जाल ही है, क्षणिक है, जबकि सच्चा सुख शाश्वत होता हैं जिसे हमको प्राप्त करना चाहिए हमको अपने जीवन में अहंकार को महत्व नहीं देना चाहिए जबकि हम सबसे ज्यादा उसी को महत्व देते हैं। आयोजन के संयोजक हितेष सेठी ने बताया कि सभा के प्रारंभ में अनिल अलका जैन सीमेंट वालो ने मुनि राज का पाद प्रक्षालन किया और स्नेहलता सोगानी, सुशीला शाह ने शास्त्र भेंट किए। संचालन प्रसन्न बिलाला ने किया। मन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष धर्मेंद्र सेठी और राहुल जैन ने श्री फल भेंट कर मुनिराज से निवेदन किया। इस अवसर पर डॉ अक्षय जैन, दीपक जैन, नितिन दोशी, ललित जैन सरोवर, संजय निशि जैन, जिनेन्द्र जैन, पंकज जैन आदि विशेष रूप से उपस्थित थे।