ज्योतिषाचार्यों की राय, भारत का राष्ट्रीय पंचांग होना चाहिए
विश्व ज्योतिष वास्तु ज्योतिष महासम्मेलन उज्जैन में होना चाहिए
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के आंगन में अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष संगोष्ठी में विश्व के 350 ज्योतिषाचार्य एकत्रित हुए जिसमें नेपाल भूटान, पाकिस्तान और भारत के 25 राज्यों के ज्योतिषाचार्य सम्मिलित थे। सर्वाधिक संख्या मातृशक्ति की रही। खगोलीय घटनाक्रम .भूगोल और कर्क रेखा के दोलन पर सभी ज्योतिषाचार्य ने गहन शोध कार्य की आवश्यकता को बताते हुए भारत में होने वाले मानसूनी परिवर्तन पर चिंता व्यक्त की।
उपस्थित ज्योतिषाचार्यों को उद्घाटन अवसर पर राज्यसभा सदस्य बालयोगी उमेशनाथ जी महाराज ने संबोधित किया .और कहा कि प्राचीन काल से ही भारतकाल गणना के क्षेत्र में विश्व गुरु रहा है इसलिए भारत के पंचांग ही विश्व को स्वीकार्य थे। संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों के बारे में जानकारी देते हुए संयोजक डॉ. सर्वेश्वर शर्मा ने बताया कि फलित गणित अंक गणित, तंत्र शास्त्र और वाइब्रेशन के आधार पर शोधपरक चर्चा हुई।
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ मप्र शासन, .साउथ एशियन एस्ट्रो फेडरेशन नेपाल, पूर्णश्री फाउंडेशन उज्जैन, सम्राट विक्रमादित्य विद्वत परिषद उज्जैन, शखोद्वारा शोध संस्थान, अश्विनी शोध संस्थान महिदपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अर्पण भारद्वाज ने संबोधित करते हुए कहा कि उज्जैन विश्व का नाभि केंद्र है यहां से कर्क रेखा गुजरती है। कालों के काल महाकाल भी यही अवस्थित थे इसलिए उज्जैन से ही एक पंचांग निर्माण होना चाहिए। अश्विनी शोध संस्थान के निदेशक डॉ आर सी ठाकुर ने राशियों नक्षत्र आधारित प्राचीन मुद्रा साक्ष्य प्रस्तुत किए। संगोष्ठी में अतिथि बतोर पुरातत्ववेत्ता डॉ रमन सोलंकी, विक्रम विश्वविद्यालय की वरिष्ठ कार्य परिषद सदस्य राजेश सिंह कुशवाह, विक्रम विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. अजय शर्मा, डॉ. राकेश पड्या, डॉ कार्तिक भाई रावल अहमदाबाद, डॉ. विभुकांत गोस्वामी दिल्ली, राज्यज्योतिषी कृपाराम उपाध्याय भोपाल, लक्ष्मण पंथी नेपाल सहित .देश-विदेश के ज्योतिषाचार्य ने अपने-अपने पक्ष को रखा। पूर्णाश्री फाउंडेशन की ओर से सर्वश्रेष्ठ ज्योतिष आधारित वक्तव्य पर स्वर्ण पदक रजत पदक और प्रमाण पत्रों से सम्मानित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन का संचालन डॉ. रश्मि मिश्रा और डॉ. महेंद्र पड्या के द्वारा किया गया। आभार डॉ. अजय शर्मा के द्वारा व्यक्त किया गया। उपस्थित सभी ज्योतिषाचार्य ने एक से निर्णय लिया कि सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा 57 ईसा पूर्व में विक्रम संवत का प्रचलन किया था इसे राष्ट्रीय मान्यता मिलना चाहिए। भारत का राष्ट्रीय पंचांग होना चाहिए। विश्व ज्योतिष वास्तु ज्योतिष महासम्मेलन उज्जैन में होना चाहिए। भारत में राष्ट्रीय पंचांग निर्माण समिति का निर्माण होना चाहिए। स्कूली शिक्षा विभाग के माध्यम से प्राइमरी क्लास से ही ज्योतिष खगोल विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए। डूंगला वेधशाला को विश्व का काल गणना केंद्र के रूप में मान्यता प्रदान करना चाहिए। पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर वेधशाला डूंगला को नासा इसरो की तर्ज पर विकसित किया जाना चाहिए। सम्राट विक्रमादित्य के ज्योतिषी वराहमिहिर के द्वारा कर्कराजेश्वर महादेव मंदिर नरसिंह घाट पर कॉल गणना की जाती थी उस स्थल को स्मृति स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। खगोलविदो की मान्यता है कि नारायण ग्राम में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अपने मित्र सुदामा के साथ काल गणना का कार्य किया गया था इसलिए उसे स्थल को भी स्मृति स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। ज्योतिर्विद होने के लिए उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय के माध्यम से डिग्री धारी ही ज्योतिष कार्य करने के लिए मान्य हो ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए।