जश्न नहीं हुड़दंग था, खुशी को मातम में बदलने का षड़यंत्र था
धर्मधानी के अधर्मी आतंक मचा रहे थे, उत्सव दिखाने पहुंचे लोग अपनी बहन, बेटियों को बचा रहे थे

जीता भारत देश पर हार गया उज्जैन, उज्जैन धर्म नगरी के उन अधर्मियों से हारा, उन विधर्मियों से हारा जो अपनी संस्कृति को खूटे पर टांगकर बहन बेटियों को अंधा या कुरूप बनाने के लिए उन पर बम फेक रहे थे। टॉवर चौक पर जो लोग अपने बच्चों को भारत की जीत का उत्सव दिखाने पहुंचे वे अपने बच्चों की जान बचाकर भागते हुए नजर आए।
क्यों क्योंकि भारत की जीत का जश्न मनाने कुछ ‘‘नालायक’’ भी पहुंचे थे। नालायक शब्द छोटा है, पर शब्दों की मर्यादा है, क्रोध उस मां से पूछो जो अपने बच्चे को बीच टॉवर चौक पर शाल से दबाये कभी इधर भागती, कभी उधर, उसने बच्चे को इस कदर ढक रखा कि कहीं शाल में बच्चे का दम ही न घुट जाये। पर उस मां को तो उज्जैन शहर के ‘‘कलंकों’’ से अपने बच्चे को बचाना था, जो उस पर बम फेंक रहे थे और भारत माता की जय चिल्ला रहे थे।
भीड़ में बम फेंककर भगदड़ मचाने वाले क्या आतंकवादी से कम थे, भारत की जीत पर ‘टॉवर पर आतंक का नंगा नाच’’ हुआ यह कहना गलत नहीं है, जो हुड़दंग करने नहीं गया, वो हर शख्स इस बात की गवाही देगा, पुलिस प्रशासन भी रोक नहीं पाया, शायद इसलिए, क्योंकि यदि पुलिस रोकती तो देशभक्तों को बुरा लग जाता, धिक्कार है ऐसे देशभक्तों पर जो जीत की खुशी को मातम में बदलने सड़क पर निकले थे। रविवार की रात भारत की जीत का जश्न नहीं हुड़दंग था, खुशी को मातम में बदलने का षड़यंत्र था।