अपनी मर्जी से पति से पृथक रहकर पत्नी को भरण पोषण मांगने का अधिकार नही
कुटुंब प्रधान न्यायाधीश श्रीमती किरण सिंह ने सुनाया अहम फैसला

उज्जैन। विवाह के कुछ दिन बाद ही पति और उसके ससुराल पक्ष के द्वारा प्रताड़ित करने का आरोप लगाकर अपनी मर्जी से मायके जाने वाली पत्नी के भरण पोषण का आवेदन कुटुंब प्रधान न्यायालय उज्जैन ने खारिज कर दिया। परिवर्तित नाम आशा पति संजय निवासी उज्जैन द्वारा दहेज प्रताड़ना और पति द्वारा घर से निकाल देने को आधार बनाकर प्रधान न्यायाधीश कुटुम्ब न्यायालय उज्जैन में एक भरण पोषण आवेदन पत्र प्रस्तुत किया था। जिसमें पति की ओर से अधिवक्ता नितिशा पी पोखरना ने पैरवी करते हुए न्यायालय के समक्ष समस्त साक्ष्य प्रस्तुत किए और सत्य उजागर किया गया।
अधिवक्ता नितिशा पी पोखरना ने अपनी दलील से न्यायालय को अवगत कराया कि पत्नी स्वयं पुलिस थाने में आवेदन देकर आई है कि वह अपने मायके अपनी मर्जी से जा रही है और उसे न ही घर से निकाला है ना ही दहेज की कोई मांग की गई है। पत्नी द्वारा पति व उसके परिजन के विरुद्ध झूठा दहेज प्रताड़ना का प्रकरण पंजीबध्द कराया गया था जिसमें पति व उसके परिजन सभी दोष मुक्त किए जा चुके हैं। प्रकरण प्रचलन के दौरान अभिलेख पर आए समस्त साक्ष्य का अवलोकन करने के बाद विद्वान न्यायाधीश श्रीमती किरण सिंह द्वारा अधिवक्ता नितिशा पी पोखरना के तर्कों से सहमत होकर पत्नी द्वारा प्रस्तुत भरण पोषण का आवेदन पत्र 27 जनवरी 2025 को आदेश पारित करते हुए निरस्त कर दिया गया।
विवाह कर लेना भर ही भरण पोषण का अधिकार नही……
अधिवक्ता नितिशा पी पोखरना ने न्यायाधीश के सामने अपनी दलील प्रस्तुत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि केवल विवाह कर लेने भर से पत्नी को भरण पोषण का अधिकार नहीं हो जाता जबकि पत्नी अपनी मर्जी से अपने मायके रहने चली गई। बाद में ससुराल पक्ष और पति के मान सम्मान का भी ध्यान नहीं रखा और झूठे दहेज प्रताड़ना के केस में फसाते हुए उनसे भरण पोषण की मांग की। अधिवक्ता नितिशा पी पोखरना ने इस बात पर जोर दिया कि जब पत्नी अपने पति के साथ रहना ही नहीं चाहती है तो पति से पत्नी को भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार नही है। इस तर्क से न्यायाधीश ने सहमत होकर पत्नी के भरण पोषण का आवेदन निरस्त करते हुए प्रकरण का खर्च भी स्वयं को वहन करने का आदेश प्रदान किया है।